आपने अपनी नानी-दादी को बात-बात पर कबीर दास के दोहे कहते सुना होगा । पर Kabir ke Dohe अगर आप नानी-दादी की पीढ़ी की चीज़ें मानते हैं, तो विश्वास मानिए आप भारी भूल कर रहे हैं । हमारी पीढ़ी को पंद्रहवीं सदी में पैदा हुए Kabir Das की आज कहीं ज़्यादा ज़रूरत है ।
Kabir Das ने आज से सदियों पहले वह कर दिखाया जिसे आज भी हम कर पाने से डरते हैं – कबीर दास ने अपने समय के बड़े-बड़े दिग्गजों को और समाज की तमाम धार्मिक कुरीतियों को खुली चुनौती दी । सबसे बढ़कर, कबीर दास ने ज़िन्दगी जीने का जो तरीका सामने रखा, वह बेमिसाल था ।
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Kabir ke Dohe हमें ज़िन्दगी जीने का बहुत सुन्दर तरीका सिखा सकते हैं और मुश्किल घड़ियों में हमारी बहुत मदद कर सकते हैं । हमें बहुत बड़ी गलतियाँ करने से, किसी का बुरा करने से, कबीर आज भी बचा सकते हैं । क्या आपको ये सब बातें किताबी लगती हैं? चलिए आपकी ही ज़िन्दगी से एक उदाहरण आपके सामने रखते हैं:
अक्सर ऐसा होता है कि हम दूसरों के लिए अच्छा करते हैं, पर बार-बार पलट कर लोग हमारा ही अहित करते हैं – हमारे ख़िलाफ़ ज़हर उगलते हैं ।
मन में तब यह बात आती है कि दूसरों का भला करने से क्या फ़ायदा? सब गलत कर रहे हैं तो मैं ही क्यूँ सबका भला करूँ? और ऐसी हिदायत देने वाले भी हमें मिल जाते हैं । यही मौके हमारी अच्छाई का इम्तिहान लेते हैं और इस इम्तिहान में पास होने में बेहद मदद करते हैं – कबीर दास :
Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi
संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत ।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग ।
(अर्थ: सच्चा इंसान वही है जो अपनी सज्जनता कभी नहीं छोड़ता, चाहे कितने ही बुरे लोग उसे क्यों न मिलें, बिलकुल वैसे ही जैसे हज़ारों ज़हरीले सांप चन्दन के पेड़ से लिपटे रहने के बावजूद चन्दन कभी भी विषैला नहीं होता ।)
कहिये, क्या कहते हैं आप? है आप में यह हौसला? कहते हैं बुरा काम करना आसान है, पर सबके लिए अच्छा करते चले जाना सिर्फ ताकतवर लोगों के बस की बात होती है ।
वाकई दुनिया में हमारा बुरा चाहने वाले और हमारे साथ बुरा करने वालों की कोई कमी नहीं है । सवाल यह है कि ऐसे में हम क्या करें? क्या हम भी उसी बुराई को अपना लें? जवाब देते हैं कबीर दास :
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।
सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय ।
(अर्थ: एक अच्छे इंसान को सूप जैसा होना चाहिए जो कि अनाज को तो रख ले पर उसके छिलके व दूसरी गैर-ज़रूरी चीज़ों को बाहर कर दे ।)
कितना बेहतरीन तरीका सुझाया है कबीर ने! अगर चारों ओर गंदगी है, तो उससे हम अपना मन गंदा क्यों करें? सबसे बड़ी चीज़ है अपने मन को साफ़ और सुन्दर रखना, पर यह अपने आप नहीं होता । जैसे बाहर की धूल हमारे कमरे को गन्दा कर देती है, वैसे ही दुनिया की मैल भी हम सबके मन को गंदा करती है । उसे साफ़ करते रहना होता है ।
हमें घर साफ़ करना और नहाना तो याद रहता है, लेकिन मन को कपड़ा लेकर साफ़ करते रहना भूल जाता है । यह याद दिलाने का काम कबीर करते हैं :
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
(अर्थ: हम सभी हर रोज़ अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को बहुत कम लोग साफ़ करते हैं । जो इंसान अपने मन को साफ़ करता है, वही हर मायने में सच्चा इंसान बन पाता है ।)
Kabir बार-बार अपने दोहों में झूठे पाखंड और ऊपरी ढोंग से बचने के लिए कहते हैं । लोग सोचते हैं कि सिर्फ ऊपरी धार्मिक कर्मकाण्ड करके वे अपने मन को साफ़ कर सकते हैं, कबीर कहते हैं :
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।
(अर्थ: माला फेरते-फेरते युग बीत गया लेकिन मन में जमी बुराइयां नहीं हटीं । इसीलिए, यह लकड़ी की माला को हटा कर मन की साधना करो!)
कबीर ने ऐसे ही ढोंगी लोगों पर, जो ऊपर से अपने आप को शुद्ध और महान दिखाने की कोशिश करते हैं, व्यंग्य कसते हुए कहा था :
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।
(अर्थ: अगर मन का मैल ही नहीं गया तो ऐसे नहाने से क्या फ़ायदा? मछली हमेशा पानी में ही रहती है, पर फिर भी उसे कितना भी धोइए, उसकी बदबू नहीं जाती ।)
ठीक है, कहने के लिए या उपदेश देने के लिए तो यह बात अच्छी है, पर क्या वाकई ऐसा कर पाना आज के ज़माने में प्रैक्टिकल है भी? हममें से बहुत सारे लोग ये बातें सुनकर ऐसा ज़रूर सोचते हैं । इसका जवाब किताबों में नहीं है, कबीर के पास है :
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का जो पढ़े सो पंडित होय ।
(अर्थ: मोटी-मोटी किताबें पढ़कर कभी कोई ज्ञानी नहीं बना । “प्रेम” शब्द का ढाई अक्षर जिसने पढ़ लिया, वही सच्चा विद्वान बना ।)
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ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
(अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जिसने कभी अच्छे लोगों की संगति नहीं की और न ही कोई अच्छा काम किया, उसका तो ज़िन्दगी का सारा गुजारा हुआ समय ही बेकार हो गया । जिसके मन में दूसरों के लिए प्रेम नहीं है, वह इंसान पशु के समान है और जिसके मन में सच्ची भक्ति नहीं है उसके ह्रदय में कभी अच्छाई या ईश्वर का वास नहीं होता ।)
Kabir की सोच बड़ी साफ़ और सुलझी हुई सोच थी । उनका मानना था कि वह आदमी जिसके मन में दुनिया के लिए प्यार है, वही असली इंसान बन सकता है और दुनिया भर के लिए यह प्यार पैदा होता है दूसरे के दुःख-तकलीफ को अपना समझे से :
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।
(अर्थ: जो इंसान दूसरों की पीड़ा को समझता है वही सच्चा इंसान है । जो दूसरों के कष्ट को ही नहीं समझ पाता, ऐसा इंसान भला किस काम का!)
आज ज़्यादातर लोग सिर्फ अपने बारे में, अपने दुःख-सुख के बारे में सोचते है, जैसे कि जानवर, जो सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं, लेकिन हमें जो चीज़ जानवरों से अलग करती है वह है हमारा दूसरों से लगाव और जुड़ाव । कबीर कहते हैं :
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
(अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे रौंद रहे हो, पर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब तुम भी मिट्टी हो जाओगे और मैं तुम्हें रौंदूंगी!)
कितनी दूर तक की देखते हैं कबीर! हम सब हर वक्त अपने बारे में ही चिंतित रहते हैं पर यह भूल जाते हैं कि एक दिन हमें भी मिट्टी में ही विलीन हो जाना है और पीछे सिर्फ हमारे किये हुए अच्छे या बुरे काम रह जाने हैं ।
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ।
(अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तब सब खुश थे और हम रो रहे थे । पर कुछ ऐसा काम ज़िन्दगी रहते करके जाओ कि जब हम मरें तो सब रोयें और हम हँसें ।)
यह हुआ असली इंसान की तरह ज़िन्दगी जीने का तरीका – जिंदादिली और सच्चाई के साथ! तो कम से कम अब तो आप मानेंगे कि कबीर एक बेहतर ज़िंदगी जीने में वाकई हमारी मदद कर सकते हैं ।
ज़िन्दगी तो सब जीते हैं लेकिन कैसे जीते हैं यह है सवाल और इसे तय करना बिलकुल हमारे हाथों में है! कबीर ने ऐसी ज़िंदगी जी जो आज भी मिसाल है, तो आइये हम भी कुछ ऐसी ही जिंदगी जी कर दिखाए और दूसरों के लिए मिसाल बने! तो कहिये, क्या कहते हैं आप?
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तो फ्रेंड्स यह थे kabir ke dohe अर्थ सहित हिंदी में, हमें विश्वास है की यह दोहे आपके जीवन को आसान और समृद्ध बनाने में बहुत ही उपयोगी साबित होंगे । शुक्रिया! 🙂
A good informative post that you have shared and thankful your work for sharing the information. I appreciate your efforts and all the best.
बेहतर संग्रह किया है आपने |
jai ho kabir das ji maharaj
Kamaal ka lekh likha sir aapne thanku
कबीरदास जी एक महान कवि थे । बडी़ -बडी़ बात छोटे-छोटे शब्द में कह देते थे। कबीर जी की वाणि बहुत पसंद हैं।
mera manna hain ki koi bhi insan kitna bhi gyan ki baate ko pad le yadi us baat ko apni life me amal nahi karte to hamara life kabhi badal nani sakata kyoki padne ne kuchh nahi hot jab tak ham apni life me amal n kare
So Thank you so much kabir ke dohe very good zindagi Badalne wala word hain bhai
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का जो पढ़े सो पंडित होय ।
ऐसे शब्द और लाइन जिसे सुन कर मन को सुकून और दिल को इत्मिनान मिलता है.कबीर जी के जैसा न कोई था ,न है और न होगा.
इतने अच्छे दोहे और जानकारी हम लोगो के साथ शेयर करने के लिए आप का धन्यवाद.
is samaj me knowledge ko protsahan dena hi achi baat hai
बहुत अच्छे दोहे है।
Thnks bhai such an inspiring work
कबीर दास जी के बारे में आपका यह लेख पूरी जानकारी के साथ लिखा गया है। कबीर दास एक ऐसे कवि थे, जो अपनी बड़ी बात को छोटे शब्दों में पिरोकर जानते थे। आपका लेख बड़ा ही अच्छा है। आभार
bot hi ache dohe hain
seriously amazing collection thanks for sharing with us
nice
काफी सराहनीय कार्य किया और पहल की हैं आप ने इस कार्य की जीतनी भी प्रशंसा की जाए वो कम हैं
इसी से हिंदी ब्लॉगर को प्रेरणा मिलती है और हिंदी भाषा को बढ़ावा मिलता है
प्रशंसा के लिए शुक्रिया आलोक भाई, हम ऐसी कमेंट्स को बहुत पसंद करते है इससे हमें और बेहतर काम करने की प्रेरणा मिलती है. 🙂
So nice kabir dass ji maharaj ji ko sat say naman
Kabir sahab keval kavi hi nahi ek mahan sant bhi the
itni rahasyamayi vichar koi kavi nahi kar sakta
kabir prakash ki ek jyoti the jo khud jal kar karodo logo ko prakash se bhar gaye
Kabir Das ke Dohe Aapne acha collection publish kiya hai
kabir das pr bahut achha post lika apne… apka dhanyawad
शुक्रिया मोहित भाई. 🙂
Apke Likhne Ka Andaaz Bahut Accha Laga. I Think Mere Ko Es Topic Pe Apka Blog Sabse Accha Laga. Good Work
शुक्रिया रवि भाई. 🙂
sir kabeer ji dohe share kren ke liye bahut bahut dhanywad aapka
Sir kabeer ji dohe ko padhkar zindgee jine ka tarika samjh me aa gya thank you for sharing
शुक्रिया आशीष भाई. 🙂
kabir das ke dohe tark dikhay bine hi tark ko samajha dete hai
man ke har ek pravitti ko kabir ke har ek dohe me samaye hote hai
संत कबीर दास के दोहे हमारे साथ शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
कबीर दास जी के दोहे बहुत गहराई लिए होते हैं | ये आज भी तार्किक हैं | आपने उनके भावार्थ भी बहुत सुन्दर तरीके से देकर बहुत अच्छी पोस्ट शेयर की |
शुक्रिया.
bot hi ache dohe hain , great effort. sabse badi baat hai har dohe ki explaintion. you are great.
शुक्रिया निवेदिता. 🙂
sir can u plz give me ur mail id?
viratstar02@gmail.com
कबीर दास वाकई में बहुत महान कवि थे, जो शब्दों को पिरोकर एक बहुत अच्छी बात सरल भाषा में कह जाते हैं। कवीर वाणी मुझे बहुत पसंद है
कबीर दास जी एक ऐसे महान कवी थे, जो कम शब्दों में बड़ी बात कह देते थे| उनके जीवन दर्शन और और ज्ञान से युक्त दोहों के लिए सत – सत नमन|